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हरि हरि हरि सुमिरन करौ / सूरदास
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बिलावल
हरि हरि हरि सुमिरन करौ।
हरि चरनारबिंद उर धरौं॥
हरि की कथा होइ जब जहां।
गंगाहू चलि आवै तहां॥
जमुना सिन्धु सरस्वति आवै।
गोदावरी विलंब न लाबै॥
सर्व तीर्थ को बासा तहां।
सूर, हरि-कथा होवे जहां॥