भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं एक, अमित बटपारा / तुलसीदास
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:20, 10 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }}<poem> मैं एक, अमित बटपारा। कोउ सुनै न मोर ...)
मैं एक, अमित बटपारा। कोउ सुनै न मोर पुकारा॥
भागेहु नहिं नाथ! उबारा। रघुनायक करहु सँभारा॥
कह तुलसिदास सुनु रामा। लूटहिं तसकर तव धामा॥
चिंता यह मोहिं अपारा। अपजस नहिं होइ तुम्हारा॥