भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

असन्तोष / मैथिलीशरण गुप्त

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:01, 19 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मैथिलीशरण गुप्त |संग्रह=झंकार / मैथिलीशरण गुप्त }} नही...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।
मिथ्या मेरा घोष नहीं।
वह देता जाता है ज्यों ज्यों,
लोभ वृद्धि पाता है त्यों त्यों,
नहीं वृत्ति-घातक मैं,
उस घन का चातक मैं,
जिसमें रस है रोष नहीं।
नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।
पाकर वैसा देने वाला—
शान्त रहे क्या लेने वाला ?
मेरा मन न रुकेगा,
उसका मन न चुकेगा,
क्या वह अक्षय-कोष नहीं ?
नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।

माँगू क्यों न उसी को अब,
एक साथ पाजाऊँ सब,
पूरा दानी जब हो
कोर-कसर क्यों तब हो ?
मेरा कोई दोष नहीं।
नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।