भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लू-1 / अग्निशेखर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:18, 18 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अग्निशेखर |संग्रह=मुझसे छीन ली गई मेरी नदी / अग्...)
तपी हुई धरती पर रखे
चिनार से मेरे पिता ने
अपने हरे पाँव-
हे राम !
राशन, पानी और टैंटो के लिए
निकाले गए जुलूस में चलते हुए
कहा उन्होंने
मेरी जल रही हैं पलकें-
मैंने उनके सर पर रख दी
गीली रुमाल...
पुलिस ने छोड़े आँसू के गोले
भाग गए विस्थापित
पिता बैठ गए एक गली में
खम्भे के साथ, बोले-
चलो करते हैं धर्म-परिवर्तन ही
और लौट जाएंगे
घने चिनारों की छाँह में
वहीं मरेंगे अपनी मातृभूमि में
एक ही बार
पिता देखते रहे धूप में अवाक
और वहीं पर
हो गए ढेर