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स्मृतियाँ / अजित कुमार
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पगध्वनियाँ जितनी भी,
- जब भी सुनाई दीं
- मेरे ही जूतों की
- घिसट रही गतियाँ थीं ।
- आकृतियाँ जैसी भी,
- जो भी दिखायी दीं
- दर्पण में मेरे ही
- मुख की विकृतियाँ थी ।
- कितु आह । स्मृतियाँ ॥
- -वे केवल तुम्हारी ही