भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक लहर को / अजित कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:02, 11 अक्टूबर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=ये फूल नहीं / अजित कुमार }} <Poem> त...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तुझे जानता हूँ
तू कुछ भी नहीं कहेगी ।

पर वह उमड़न
जो तुझमें है
अब से
मुझमें
सदा रहेगी ।
लहरों की टकराहट
सुनकर
तू उसको जानेगी ।
साक्षी सातो सागर ।
केवल मैं ही बिखरूँ,
टूटूँ,
उलझूँ ।
तुझ तक पहुँचें
केवल
मेरे फेन-पुष्प
बुदबुद से मेरे गान ।
नहीं ।
साक्षी सातो सागर ।
मेरे कारण
तू
मेरे कारण
कुछ भी नहीं सहेगी ।

लौटा दे उस एक लहर को
अपनी
भीगी-सी अँजुरी
में
भर कर ।