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एक काव्य मोती |
प्रभू मोरे अवगुण चित न धरो । समदरसी है नाम तिहारो चाहे तो पार करो ॥ एक जीव एक ब्रह्म कहावे सूर श्याम झगरो । अब की बेर मोंहे पार उतारो नहिं पन जात टरो ॥
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