भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक चिड़िया आई / अनूप अशेष
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:30, 23 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप अशेष }} <poem> जिस दिन मेरे घर एक चिड़िया आई पंख...)
जिस दिन मेरे घर
एक चिड़िया
आई पंख फुलाए।
मैंने देखा वह दिन
मेरे मन का था।
भूल गई थीं
सभी झंझटें
लिखी गई थी सिर्फ़ राग-मय
मीठी-मीठी घर-गाथा।
मुझे लगा यह दिवस
सुरों में
मुझको गाए।
हर कश्मीरी-क्षण मुझमें
जो डरा-डरा था।
अपने पंखों
लाल गुलों का बाग खिलाए
अब तक जो मेरी आँखों में
नुचा-मरा था।
मेरा आज
तुम्हारे कल की
भोर जगाए।