भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जूते / अनूप सेठी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:57, 27 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप सेठी }} कई हज़ार साल पहले जब एक दिन किसी ने खाल खीं...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कई हज़ार साल पहले जब एक दिन

किसी ने खाल खींची होगी इंसान की

उसके कुछ ही दिन बाद जूता पहना होगा

धरती की नंगी पीठ पर जूतों के निशान मिलते हैं


नुची हुई देह नीचे दबी होगी

धरती हरियाली का लेप लगाती है


जूते आसमान पाताल खोज आए

जूते की गंध दिमाग तक चढ़ आई है

कई हज़ार साल हो गए

नंगे पैर से टोह नहीं ली किसी ने धरती की