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मन (चार कविताएँ) / अमिता प्रजापति
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1.
जैसे सुन्दर वन में अकेले
खड़ा हो हिरन
कभी-कभी ऎसे अकेले
होता है मन
2.
सच कभी
आता है हम तक ऎसे
गिरा हो बदन पर
ठंडा पानी
ठंडों में
3.
कमल की पंखुरी-सा मन
पड़ा है दुख
जिस पर
पानी की बूंद-सा
मोती-सा
4.
कल एक हंस उतरा
आसमान से
बहुत सारी
सफ़ेदी लिए, निर्मलता लिए
अपने पूरे पंखों से समेटता रहा मुझे
लगता है अब भी वह मुझे उड़ाए
ले जा रहा है...