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दाना / अरुण कमल

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वह स्त्री फँटक रही है गेहूँ

दोनों हाथ सूप को उठाते-गिराते

हथेलियों की थाप-थाप्प

और अन्न की झनकार

स्तनों का उठना-गिरना लगातार--

घुटनों तक साड़ी समेटे वह स्त्री

जो ख़ुद एक दाना है गेहूँ का--

धूर उड़ रही है केश उड़ रहे हैं

यह धूप यह हवा यह ठहरा आसमान

बस एक सुख है बस एक शान्ति

बस एक थाप एक झनकार ।