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रात की गाथा / अरुण कमल

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जैसे उतरने में एक पाँव पड़ा हो ऎसे

मानो वहाँ होगी एक सीढ़ी और

पर जो न थी

ऎसे ही हाथ पीठ पर पड़ते लगा उसे


और ऎसे ही सुबह हुई

हाथ पीठ पर रक्खे-रक्खे ।