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वृथा / अरुण कमल

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जब उम्र कम थी

काले थे केश और आभा थी
पर मैं दुबला था बहुत

फिर उम्र बढ़ी

शरीर गोटाया आँखों को थाह मिली
पर कहाँ कैसे निबहना आता न था

अब जब उम्र हुई

जानता हूँ दाँव-पेंच शास्त्र कुल
पर साथ नहीं देह न थाह न आभा

कभी कच्चा कभी डम्भक कभी पुलपुल ।