भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम-5 / अर्चना भैंसारे
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:21, 19 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना भैंसारे |संग्रह= }} <Poem> वो पहला ख़त अभी भी र...)
वो पहला ख़त
अभी भी रखा है
सन्दूक में सम्भाल कर
तुम्हारी अंगुलियों की
छुअन के साथ
जिसकी अन्तिम पंक्ति में
लिखा है तुमने
मेरा नाम...