भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक शे’र२ / अली सरदार जाफ़री
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:40, 25 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अली सरदार जाफ़री }} <poem> एक शे’र२ ========= अपने बेबाक न...)
एक शे’र२
=========
अपने बेबाक निगाहों में समाया न कोई
और वह है कि हर इक ताज़ा ख़ुदा से ख़ुश है