भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दो शे’र / अली सरदार जाफ़री
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:53, 20 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अली सरदार जाफ़री }} <poem> दो शे’र ==== हर मंज़िल इक मंज...)
दो शे’र
====
हर मंज़िल इक मंज़िल है नयी और आख़िरी मंज़िल कोई नहीं
इक सैले-रवाने-दर्दे-हयात१ और दर्द का साहिल कोई नहीं
हर गाम२ पे ख़ूँ के तूफ़ाँ हैं, हर मोड़ पे बिस्मिल३ रक़्साँ हैं४
हर लहज़ा५ है क़त्ले-आम६ मगर कहते हैं कि क़ातिल कोई नहीं
१.जीवन की व्यथाओं का सैलाब २.पग ३.घायल ४.तड़प रहे हैं ५.क्षण ६.सर्वसाधारण का वध