भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घरौंदे / अवतार एनगिल

Kavita Kosh से
गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:57, 14 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |संग्रह= }} <poem> सागर किनारे खेलते दो बच...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सागर किनारे
खेलते दो बच्चों ने
मिलकर घरौंदे बनाए
देखते-देखते
लहरों के थपेड़े आए
उनके घर गिराए
और
भागकर सागर में जा छिपे

माना, कि सदैव ऎसा हुआ
तो भी
किसी भी सागर के
किसी भी तट पर
कहीं भी
कभी भी
बच्चों ने खिलौने बनाने बन्द नहीं किए