भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नाहन में / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:50, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |संग्रह=सूर्य से सूर्य तक / अवतार एन...)
इस नगर की
गदराई सड़कों पर
पकते आमों की महक में
फिर बोली है कोयल
और दहक उठा है
अकेला एक तारा
सलेटी आकाश के तम्बू पर
काले पेड़ों की कढ़ाई
और चंदा की फांक संग
ठहरे हुए ताल
एक-दूसरे को क़ाट निकलते
सड़कों के वृत्त
और अनगिनत वनस्पतियों की एकाकार महक
इन सड़कों के वृत्तों को घेरता
आकाश का एक वृत्त
ऊपर नहीं
अपने ही गिर्द लगता है जो
तेरी कोमल आवाज़ का
धीमा जादू
अभी अभी मेरे कानों में घुला है
अब यादा आया
कि क्यों गदराई है
इस शहर की सड़कें
कि क्यों बोली थी कोयल
कि दहका था क्यों
पंचमी के चांद संग
अकेला एक तारा
अम्बर से आलिंगन-बद्ध
मैं याद नहीं कर पाया
अपना कोई एक नगर
अपनी कोई एक डगर
बस तेरी आवाज़ का कोमल जादू
गुज़र गया है
मुझे छूकर ।