भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जल नहीं है / अश्वघोष
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:52, 13 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वघोष |संग्रह= }} <Poem> अब नदी में जल नहीं है पत्थ...)
अब नदी में जल
नहीं है
पत्थरों पर
लेटकर खामोश,
बादलों का पढ़ रही अफसोस
सत्य है अटकल नहीं है
अब नदी में जल
नहीं है
दूर, कितने
दूर हैं अब तट,
आती नहीं पदचाप की आहट
पक्षियों की भी, कोई
हलचल नहीं है
अब
नदी में
जल नहीं है