भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शरद की रातें / आलोक धन्वा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:39, 3 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = आलोक धन्वा }} शरद की रातें इतनी हल्की और खुली जैसे पू...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शरद की रातें

इतनी हल्की और खुली

जैसे पूरी की पूरी शामें हों सुबह तक


जैसे इन शामों की रातें होंगी

किसी और मौसम में