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वह मैदान के किनारे / उदयन वाजपेयी
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वह मैदान के किनारे
सखियों के साथ बैठी है
उसका एक हाथ उसके बालों को
चुपचाप सँवार रहा है, दूसरे से
घास पर ओस की तरह
निरन्तर टपक रहा है एक विस्मृत स्पर्श
वह रास में डूबती है
उभरती है आँसुओं में