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कहने को थी / जया जादवानी
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पहले रुकी, झिझकी, लड़खड़ाई
फिर ऐसी चली कि
ज़िन्दगी देखती ही रह गई
कहने को थी वह सिर्फ़ कविता
पर ऐसी कि कायनात
उसके क़दमों में ढह गई।