भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टूटी है मेरी नींद मगर तुमको इससे क्या / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:27, 19 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …)
टूटी है मेरी नींद मगर तुमको इससे क्या
बजते रहे हवाओं से दर, तुमको इससे क्या
तुम मौज-मौज मिसल-ए-सबा घूमते फिरो
कट जाएँ मेरी सोच के पर, तुमको इससे क्या
औरों के हाथ थामो उन्हें रास्ता दिखाओ
मैं भूल जाऊं अपना ही घर, तुमको इससे क्या
अब्र-ए-गुरेज़ पा को बरसने से क्या गरज़
सीपे में बन न पाए गुहर, तुमको इससे क्या
तुमने तो थक के दश्त में खेमे लगा दिए
तन्हा कटे किसी का सफ़र, तुमको इससे क्या