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अपने रंग में उतर / प्रदीप कान्त
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अपने रंग में उतर
अब तो जंग में उतर
सलीका उनका क्यों
अपने ढंग में उतर
दर्द को लफ़्ज़ यूँ दे
किसी के रंज में उतर
बदतर हैं हालात ये
कलम ले, तंज में उतर
अपने में ही गुम है
अपने दिले तंग में उतर