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अन्त तक / अशोक वाजपेयी
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उस क्षण तक जीने देना मुझको
जब मैं और वह प्रियंवदा
एक डूबते पोत के डेक पर
सहसा मिलें।
दो पल तक न पहचान सकें एक दूसरे को,
फिर मैं पूछूँ :
"कहिए, आपका जीवन कैसा बीता?"
"मेरा...आपका कैसा रहा?"
"मेरा..."
और पोत डूब जाए।
रचनाकाल : 1957