भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदि स्मृति / अमृता प्रीतम

Kavita Kosh से
Eklavya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:20, 14 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमृता प्रीतम |संग्रह= }} <poem> काया की हक़ीक़त से ले...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काया की हक़ीक़त से लेकर —
काया की आबरू तक मैं थी,
काया के हुस्न से लेकर —
काया के इश्क़ तक तू था।

यह मैं अक्षर का इल्म था
जिसने मैं को इख़लाक दिया।
यह तू अक्षर का जश्न था
जिसने 'वह' को पहचान लिया,
भय-मुक्त मैं की हस्ती
और भय-मुक्त तू की, 'वह' की

मनु की स्मृति
तो बहुत बाद की बात है...