भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
औरत-13 / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:50, 30 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> (औरत -तेरह) खि…)
(औरत -तेरह)
खिले हुए
सुन्दर फूलों की मिल्कियत
दंभ उसका
पीले कमज़ोर
हो
पराजित
मुँह चुराते नाराज़
रंग गंध के मेलों का
सिरजनहार
पालक दृष्टा प्रभाव
और दोनों ही के लिए
खाद -पानी हो
मिट्टी होती
खिलते में खिलती कम
मुर्झाने में
मुर्झाती ज़्यादा औरत.