युग तुम में, तुम युग में कैसे झाँक रहे हो बोलो?
उथल-पुथल तब हो कि समय में जब तुम जीवन घोलो।
तुम कहते हो बलि से पहले अपना हृदय टटोलो,
युग कहता है क्रान्ति-प्राण! पहिले बन्धन तो खोलो।
तेरी अँगुली हिली, हिल पड़ा
भावोन्मत्त जमाना
अमर शान्ति ने अमर
क्रान्ति अवतार तुझे पहचाना।
रचनाकाल: प्रताप प्रेस, कानपुर-१९४४