भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ / रश्मि रेखा
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:10, 19 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रश्मि रेखा }} <poem> जब दुनिया में आंखें खोली सुनी प्...)
जब दुनिया में आंखें खोली सुनी प्यार की मीठी बोली
पकड़ के उंगली चलना सीखा नहीं स्नेह की तेरे सीमा
हां वो तुम ही तो थी ओ मां!
जीवन के हर नए मोड़ पर रिश्तो के संग मुझे जोड़कर
जब तुमने मेरा साथ दिया था आंचल से मुझे ढांक लिया था
हां वो तुम ही तो थी ओे मां!
जब जब मैं जीवन से हारी सोचा छोडूं दुनिया सारी
तुमने मेरा सिर सहलाकर जीवन अमृत मुझे दिया था
हां वो तुम ही तो थी ओे मां!
दूर रहूं या पास हूँ तेरे; तेरी आशीषों के घेरे
सदा राह मेरी महकाते मानो चंदन के उपवन सा
हां वो तुम ही तो थी ओे मां!