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ख़ूब सज रहे / नागार्जुन

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ख़ूब सज रहे आगे-आगे पंडे

सरों पर लिए गैस के हंडे

बड़े-बड़े रथ, बड़ी गाड़ियाँ, बड़े-बड़े हैं झंडे

बाँहों में ताबीज़ें चमकीं, चमके काले गंडे

सौ-सौ ग्राम वज़न है, कछुओं ने डाले हैं अण्डे

बढ़े आ रहे, चढ़े आ रहे, चिकमगलूरी पंडे

बुढ़िया पर कैसी फबती है दस हज़ार की सिल्कन साड़ी

उफ़, इसकी बकवास सुनेंगे लाख-लाख बम्भोल अनाड़ी

तिल-तिल कर आगे खिसकेगी प्रजातंत्र की खच्चर-गाड़ी

पूरब, पश्चिम, दक्खिन, उत्तर आसमान में उड़े कबाड़ी


(रचनाकाल : 1978)