भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक मन: स्थिति / स्नेहमयी चौधरी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:33, 12 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्नेहमयी चौधरी |संग्रह=एकाकी दोनों / स्नेहमयी चौधरी }} ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बार-बार अपनी ही कविताओं को

पढ़ने की इच्छा करता हुआ मन

किसी दूसरे के बढ़े हुए हाथ की

तलाश में घूमता है।


अजब स्थिति है :

बदराया हुआ आसमान

न बरसता है, न खुलता।


सारा शहर

बंद खिड़कियों वाला

एक कमरा हो गया है।

आड़ी-तिरछी रेखाएँ

बनाता हुआ धुआँ

जब बादलों की एक और परत बन जाता है--

मैं अपने बूढ़े पिता को पत्र लिखने लगती हूँ,

जिसमें भाई,बहनों और सफ़ेद बालों वाली माँ

की कुशल-क्षेम के प्रति उत्सुकता है।


मेरे सामने :

पौधों को स्थानांतरित करने की

प्रक्रिया में माली

हर रंग, हर आकार के फूलों को

पास-पास रख चुका है।


जाने किस अभाव में

ओस-भीगी घास

जिस पर मैं बैठी हूँ

और गीली लगने लगी है।


हालाँकि

झर-झर कर

पीपल की सूखी पत्तियाँ

एकत्र हो चुकी हैं,

मेरे पीछे आ कर।