भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम / मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:15, 30 दिसम्बर 2009 का अवतरण (तुम (मधुरिमा) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर तुम / मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है)

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सचमुच, तुम कितनी भोली हो !

संकेत तुम्हारे नहीं समझ में आते,
मधु-भाव हृदय के ज्ञात नहीं हो पाते,

तुम तो अपने में ही डूबी
नभ-परियों की हमजोली हो !

तुम एक घड़ी भी ठहर नहीं पाती हो,
फिर भी जाने क्यों मन में बस जाती हो,

वायु बसंती बन, मंथर-गति
से जंगल-जंगल डोली हो !