भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आह्वान / जूझते हुए / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:43, 1 जनवरी 2010 का अवतरण (आह्नान (जूझते हुए) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर आह्वान / जूझते हुए / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है)

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रहो मत मूक,
की नहीं तुमने
कहीं,
कोई चूक।

बोलो बात —
बेलाग
खरी
दो-टूक।

सत्य को
तुमने सदा
सत्य कहकर ही

पुकारा।

इसमें —
है नहीं अपराध
कोई भी
तुम्हारा।

किन्तु
जिसने सत्य को
हठधर्मिता से
झूठ ठहराया,
वास्तविकता की
उपेक्षा की,
वंचना का धर्म

अपनाया —

उस धूर्त के सम्मुख
मत रहो खामोश !
अभिव्यक्त कर आक्रोश
गरजो,
पुरज़ोर गरजो !

अनीति-विरुद्ध
प्रज्ञा-प्रबुद्ध !