भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विश्वास / नई चेतना / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:29, 15 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=नई चेतना / महेन्द्र भटनागर }} ब...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बढ़ो विश्वास ले, अवरोध पथ का दूर होएगा !

तुम्हारी ज़िन्दगी की आग बन अंगार चमकेगी,

अंधेरी सब दिशाएँ रोशनी में डूब दमकेंगी,

तुम्हारे दुश्मनों का गर्व चकनाचूर होएगा !

सतत गाते रहो वह गीत जिसमें हो भरी आशा,

बताए लक्ष्य की दृढ़ता तुम्हारी आँख की भाषा,

विरोधी हार कर फिर तो, तुम्हारे पैर धोएगा !

मुसीबत की शिलाएँ सब चटककर टूट जाएँगी,

गरजती आँधियाँ दुख की विनत हो धूल खाएँगी,

तुम्हारे प्रेरणा-जल से मनुज सुख-बीज बोएगा !

1951