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पेट की इस आग को / अश्वघोष
Kavita Kosh से
पेट की इस आग को इज़हार तक लेकर चलो।
इस हकीकत को ज़रा सरकार तक लेकर चलो।
मुफ़लिसी भी, भूख भी, बीमारियाँ भी इसमें हैं,
अब तो इस रूदाद को व्यवहार तक लेकर चलो।
डूबना तो है सफ़ीना, क्यों न ज़ल्दी हो ये काम
तुम सफ़ीने को ज़रा मँझधार तक लेकर चलो।
बँट गए क्यों दिल हमारे, तज़कीरा बेकार है
क्यूँ न इस अहसास को आधार तक लेकर चलो।
हाँ, इसी धरती पर छाएँगी अभी हरियालियाँ
हौसला बरसात की बौछार तक लेकर चलो।