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दिल्ली और मास्को / रामधारी सिंह "दिनकर"

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जय विधायिके अमर क्रान्ति की! अरुण देश की रानी!
रक्त-कुसुम-धारिणि! जगतारिणि! जय नव शिवे! भवानी!
अरुण विश्व की काली, जय हो,
लाल सितारोंवाली, जय हो,
दलित, बुझुक्ष्, विषण्ण मनुज की,
शिखा रुद्र मतवाली, जय हो।
जगज्ज्योति, जय - जय, भविष्य की राह दिखानेवाली,
जय समत्व की शिखा, मनुज की प्रथम विजय की लाली।
भरे प्राण में आग, भयानक विप्लव का मद ढाले,
देश-देश में घूम रहे तेरे सैनिक मतवाले।
नगर-नगर जल रहीं भट्ठियाँ,
घर-घर सुलग रही चिनगारी;
यह आयोजन जगद्दहन का,
यह जल उठने की तैयारी;