Last modified on 29 मई 2008, at 08:55

लिख सकूँ तो (कविता) / नईम

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:55, 29 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |संग्रह = लिख सकूँ तो / नईम }} लिख सकूँ तो—<br> प्यार लिख...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


लिख सकूँ तो—
प्यार लिखना चाहता हूँ,
ठीक आदमजात सा
बेखौफ़ दिखना चाहता हूँ।

थे कभी जो सत्य, अब केवल कहानी
नर्मदा की धार सी निर्मल रवानी,
पारदर्शी नेह की क्या बात करिए-
किस क़दर बेलौस ये दादा भवानी।

प्यार के हाथों
घटी दर पर बज़ारों,
आज बिकना चाहता हूँ।

आपदा-से आये ये कैसे चरण हैं ?
बनकर पहेली मिले कैसे स्वजन हैं ?
मिलो तो उन ठाकुरों से मिलो खुलकर—
सतासी की उम्र में भी जो ‘सुमन’ हैं

कसौटी हैं वो कि जिसपर-
नेह के स्वर
ताल यति गति लय
परखना चाहता हूँ।