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पंचवटी / मैथिलीशरण गुप्त / पृष्ठ ६
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अरे, कौन है, वार न देगी, जो इस यौवन-धन पर प्राण?
खाओ इसे न यों ही हा हा, करो यत्न से इसका त्राण।
किसी हेतु संसार भार-सा, देता हो यदि तुमको ग्लानि,
तो अब मेरे साथ उसे तुम, एक और अवसर दो दानि!"