भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओ पालन हरे ......
Kavita Kosh से
Adiya (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 02:46, 13 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: ओ पालनहारे, निर्गुण और न्यारे तुमरे बिन हमरा कौनो नाहीं.... हमरी उलझन सु...)
ओ पालनहारे, निर्गुण और न्यारे
तुमरे बिन हमरा कौनो नाहीं....
हमरी उलझन सुलझाओ भगवन
तुमरे बिन हमरा कौनो नाहीं....
तुम्ही हमका हो संभाले
तुम्ही हमरे रखवाले
तुमरे बिन हमरा कौनो नाहीं...
चन्दा मैं तुम ही तो भरे हो चांदनी
सूरज मैं उजाला तुम ही से
यह गगन हैं मगन, तुम ही तो दिए इसे तारे
भगवन, यह जीवन तुम ही न सवारोगे
तो क्या कोई सवारे
ओ पालनहारे ......
जो सुनो तो कहे प्रभुजी हमरी है विनती
दुखी जन को धीरज दो
हारे नही वो कभी दुखसे
तुम निर्बल को रक्षा दो
रहें पाए निर्बल सुख से
भक्ति दो शक्ति दो
जग के जो स्वामी हो, इतनी तो अरज सुनो
हैं पथ मैं अंधियारे
देदो वरदान मैं उजियारे
ओ पालन हरे ......