भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नासमझ यह मोहन ठकुरी / मोहन ठकुरी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:12, 6 फ़रवरी 2010 का अवतरण
उसके अपने कभी अपने नही हुए
अधूरे सपनों को गले लगाकर
बैठा यह मोहन ठकुरी
गमले के कैकटस जैसा
न फूल सकता है, न फैल सकता है!
उसकी हँसी कृत्रिम है
अव्यक्त व्यथा-वेदनाओं में लिपटकर
बैठा यह मोहन ठकुरी
किसी के मन में माया बनकर रह नही सकता
किसी की आँखों में आँसू बनकर छलक नही सकता !
मूल नेपाली भाषा से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा