भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अफसर / कुमार सुरेश

Kavita Kosh से
Kumar suresh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:47, 11 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: == अफसर <poem>आम तौर पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता उस आदमी के बारे मैं वह …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

== अफसर

आम तौर पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता
उस आदमी के बारे मैं
वह कितने प्रतिशत अफसर है
कितना आदमी बचा हुआ है

यू हँसता मुस्कराता भी है नाप तौल कर
कृपा भी करता है
बात कर लेता है अच्छी तरह से
एक आशंका सदा उपस्थित रहती है
जाने कब नाराज हो जाये

आब ऐसे समय कभी अफसर कभी आदमी की लहरे
आती जाती रहती है उसके चहरे पर
आप कभी बेतकल्लुफ नहीं हो सकते

कभी कभी वह बहुत ज्यादा आदमी दिखता है
मुस्कराता हुआ जिंदादिल और भला
किसी की बात को इस तरह सुनता हुआ
एक शब्द भी अगर छूट गया
तो लानत है कान होने पर

तब जो चापलूस चेहरा दिखाई देता है
और भी कम प्रतिशत आदमी होता है!