भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी मातृभूमि / भरत प्रसाद

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:11, 18 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भरत प्रसाद |संग्रह=एक पेड़ की आत्मकथा / भरत प्रस…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ मेरी विशाल और
महान मातृभूमि
मैं आज
तुम्हारी ममतामयी धूल और मिट्टी को
साष्टांग प्रणाम करता हूँ।

सदा हरी-भरी तुम्हारी गोद
प्रसन्न फूलों से पूर्ण
तुम्हारे पानी, फल और अन्न
हमें बहुत शक्ति देते हैं।

माँ तुम तो
प्रेम, शान्ति और करुणा की
जननी हो,
तुमने पाठ पढ़ाया है कि
अपने सम्पूर्ण हृदय से
सच्चा प्र्म करो।
बुद्ध, महावीर, मोहनदास
और नरेन्द्रनाथ
माँ, तुम्हारे महान पुत्र हैं--
जिन्होंने आदर्श मार्ग प्रकाशित किया।

हम सभी सच्चे हृदय से
तुम्हारी मिट्टी और धूल को
साष्टांग प्रणाम करते हैं!