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क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं / फ़राज़
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क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं
दोस्ती तो उदास करती नहीं
हम हमेशा के सैर-चश्म सही
तुझ को देखें तो आँख भरती नहीं
शब-ए-हिज्राँ भी रोज़-ए-बद की तरह
कट तो जाती है पर गुज़रती नहीं
ये मोहब्बत है, सुन, ज़माने, सुन!
इतनी आसानियों से मरती नहीं
जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़
जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं