भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं / फ़राज़

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:18, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं
दोस्ती तो उदास करती नहीं

हम हमेशा के सैर-चश्म सही
तुझ को देखें तो आँख भरती नहीं

शब-ए-हिज्राँ भी रोज़-ए-बद की तरह
कट तो जाती है पर गुज़रती नहीं

ये मोहब्बत है, सुन, ज़माने, सुन!
इतनी आसानियों से मरती नहीं

जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़
जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं