भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समयातीत पूर्ण-8 / कुमार सुरेश
Kavita Kosh से
Ganesh Kumar Mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:57, 26 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: 8.समयातीत पूर्ण <poem>हे महाबाहु ! तुम पूर्ण आदि अक्षर तुम सृष्टि का …)
हे महाबाहु !
तुम पूर्ण आदि अक्षर
तुम सृष्टि का आरम्भ और धारणकर्ता
तुम प्रति क्षण जीवन की आहट
हजारों सूर्यों के समान
प्रल्याग्नि सम
तुम्हारे दैदीप्यमान मुख में
पूर्ण वेग से प्रवेश करते हैं
सारे योद्धा, सारा जगत चराचर
मानो नदियों की तरंगें
प्रवेश करती हैं समुद्र में
हर क्षण विनाश,
विराट में जीवन का विलय
तुम्हारी ही इच्छा से
संपन्न हो सकता है
तुम्ही सृष्टि का जन्म और विलय हो
तुम्ही सर्वभक्षी मृत्यु हो ?
आदि स्रष्टा !