भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नहीं टूटेगा पुल / शांति सुमन
Kavita Kosh से
Amitprabhakar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:41, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शांति सुमन |संग्रह = सूखती नहीं वह नदी / शांति सुम…)
चलकर देखो,
नहीं टूटेगा यह पुल
जिस पर तुम खड़े हो
भले परानी पड़ गईँ है इसके बाँस की बल्लियाँ
पर इरादे मजबूत हों तो
पुरानी धमनियों में भी दौड़ता है
लाल-लाल लहू
नीचे जो नदी बहती है
अन्धी आँखो वाली नहीं
किनारों को सतर्क करती हुई
पुल पर चलने वालों के
पैरों को भी होशियार
करती है
चलो, डरो नहीं
पुल पर चलते हुए वनस्पतियों की तरह
हरियाएगा तुम्हारा मन
आँखों में फूटेंगे अजस्र झरने और
पास के सरोवर में पुरइन के पत्तों पर
बूँदों सा ढलमल करता हुआ
तुम्हारा अहसास
भर देगा तुम्हें भीतर से
पिछले मोड़ पर जिस वसंत को छोड़ आए थे तुम
वह मरा नहीं था
तुम्हें लगेगा कि वह वैसा लगता भर था
अहसास का यही फर्क होता है
पुल पर चलने के पहले
और चलने के बाद