भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रीछ का बच्चा / नज़ीर अकबराबादी

Kavita Kosh से
59.176.103.149 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 18:15, 23 जनवरी 2007 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रीछ का बच्चा कवि: नज़ीर अकबराबादी

~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~

कल राह में जाते जो मिला रीछ का बच्चा।

ले आए वही हम भी उठा रीछ का बच्चा ।

सौ नेमतें खा-खा के पला रीछ का बच्चा ।

जिस वक़्त बड़ा रीछ हुआ रीछ का बच्चा ।

      जब हम भी चले, साथ चला रीछ का बच्चा ।।


था हाथ में इक अपने सवा मन का जो सोटा। लोहे की कड़ी जिस पे खड़कती थी सरापा । कांधे पे चढ़ा झूलना और हाथ में प्याला । बाज़ार में ले आए दिखाने को तमाशा ।

      आगे तो हम और पीछे वह था रीछ का बच्चा ।।