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रुलाकर चल दिए इक दिन / शैलेन्द्र

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गीतकार : मजरुह सुल्तानपुरी


मिला दिल, मिल के टूटा जा रहा है
नसीबा बन के फूटा जा रहा है..

दवा-ए-दर्द-ए-दिल मिलनी थी जिससे
वही अब हम से रूठा जा रहा है

अंधेरा हर तरफ़, तूफ़ान भारी
और उनका हाथ छूटा जा रहा है

दुहाई अहल-ए-मंज़िल की, दुहाई
मुसाफ़िर कोई लुटा जा रहा है