भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब हम गुम हुए / बुल्ले शाह
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:51, 8 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुल्ले शाह }} Category:पंजाबी भाषा {{KKCatKavita}} <poem> अब हम गुम …)
अब हम गुम हुए प्रेम नगर के शहर
अपने आप को जांच रहा हूँ
ना सर हाथ ना पैर
हम धुत्कारे पहले घर के
कौन करे निरवैर!
खोई खुदी मनसब पहचाना
जब देखी है खैर
दोनों जहां में है बुल्ला शाह
कोई नहीं है गैर
अब हम गुम हुए प्रेम नगर के शहर
मूल पंजाबी पाठ
अब हम गम हुए प्रेम नगर के शहर
अपने आप नूं सोध गिआ हाँ
ना सर हाथ ना पैर
लथ्थे पगड़े पहले घर थीं
कौन करे निरवैर!
खुदी खोई अपना पद चीता
तब होई गल्ल खैर
बुल्ला शाह है दोहीं जहानीं
कोई ना दिसदा गैर
अब हम गुम हुए प्रेम नगर के शहर