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फिर इस अन्दाज़ से बहार आई / ग़ालिब

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फिर इस अंदाज़ से बहार आई
कि हुए मेहरो-मह<ref>चांद-सूरज</ref> तमाशाई

देखो, ऐ सकिनान-ए-खित्तए-ख़ाक<ref>धरती के वासियो</ref>
इसको कहते हैं आलम-आराई<ref>दुनिया को सजाना</ref>

कि ज़मीं हो गई है सर-ता-सर<ref>पूरी तरह</ref>
रूकशे-सतहे-चर्चे-मीनाई<ref>आसमान जैसी जो तारे रूपी फूलों से भरा है</ref>

सब्ज़ा को जब कहीं जगह न मिली
बन गया रूए-आब<ref>पानी की सतह</ref> पर काई

सब्ज़ा-ओ-गुल के देखने के लिये
चश्मे-नर्गिस को दी है बीनाई

है हवा में शराब की तासीर
बादा-नोशी है बाद-पैमाई<ref>हवा मापना</ref>

क्यूँ न दुनिया को हो ख़ुशी "ग़ालिब"
शाह-ए-दीदार<ref>धर्मावतार बादशाह(बहादुरशाह)</ref> ने शिफ़ा<ref>रोग से छुटकारा</ref> पाई

शब्दार्थ
<references/>