भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दहर में नक़्शे-वफ़ा / ग़ालिब

Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:15, 7 मार्च 2010 का अवतरण ()

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दहर<ref>संसार</ref> में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
है यह वो लफ़्ज़ कि शर्मिन्दा-ए-माअ़नी<ref>सार्थक</ref> न हुआ

सब्ज़ए-ख़त से तेरा काकुल-ए-सरकश<ref>(स्त्री की)ज़ुल्फें</ref> न दबा
यह ज़मुर्रद<ref>नीलम (पत्थर)</ref> भी हरीफ़े<ref>विरोधी</ref>-दमे-अफ़ई<ref>साँप</ref> न हुआ

मैंने चाहा था कि अन्दोह-ए-वफ़ा से छूटूं
वह सितमगर मेरे मरने पे भी राज़ी न हुआ

दिल गुज़रगाह ख़याले-मै-ओ-साग़र ही सही
गरनफ़स<ref>सांस</ref> जादा<ref>मार्ग</ref>-ए-सर-मंज़िल-ए-तक़वी<ref>परलोक की मंजिल</ref> न हुआ

हूँ तेरे वादा न करने में भी राज़ी कि कभी
गोश<ref>काल</ref> मिन्नत-कशे-गुलबांग-ए-तसल्ली<ref>सांत्वना की मधुर ध्वनि</ref> न हुआ

किससे महरूमिए-क़िस्मत<ref>दुर्भाग्य</ref> की शिकायत कीजे
हम ने चाहा था कि मर जाएं, सो वह भी न हुआ

मर गया सदमा-ए-यक जुम्बिशे-लब<ref>होंठ हिलना</ref> से ग़ालिब
नातवानी<ref>दुर्बलता</ref> से हरीफ़<ref>विरोधी</ref>-ए-दम-ए-ईसा<ref>ईसा के मंत्र</ref> न हुआ

शब्दार्थ
<references/>